देश में बढ़ती भिक्षावृत्ति: एक गंभीर समस्या - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


देश में बढ़ती भिक्षावृत्ति: एक गंभीर समस्या - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


चर्चा का कारण

हाल ही में पटियाला में 70 युवाओं के एक समूह ने भिखारियों और कचरा उठाने वाले (Ragpickers) बच्चों के लिए ‘हर हाथ कलम’ नामक पहल की शुरूआत की है।

परिचय

एक तरफ जहाँ भारत विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है तो वहीं दूसरी ओर धर्मस्थलों, सांस्कृतिक धरोहरों, सड़कों, गलियों और चौराहों पर बैठे भिखारियों की संख्या देश की दूसरी ही तस्वीर पेश करती है।

इतिहास के पन्नों को देखें तो भारत में भिक्षावृत्ति पहले भी होती थी लेकिन आज इसका स्वरूप बदल गया है। पहले सांसारिक मोह-माया त्यागकर ज्ञान प्राप्ति के लिए निकले साधु-संत भिक्षा माँगकर अपना जीवनयापन करते थे, लेकिन आज भिखारियों का एक बड़ा वर्ग अपनी दिनभर की जरूरतों को पूरा करने के लिए भीख माँगता है।

भिक्षुक कौन

  • भिक्षावृत्ति करने वालों में पहली श्रेणी उन लोगों की है जो गंभीर शारीरिक अस्वस्थता, असाध्य रोगों, विकलांगता के साथ ही गरीबी से पीडि़त हैं और जीवित रहने के लिए उनके पास कोई और साधन नहीं है।
  • दूसरी श्रेणी में वे बूढ़े और असहाय लोग हैं, जिन्हें परिवारों से जबरन निष्कासित कर दिया गया है।
  • तीसरी श्रेणी में ऐसे बेरोजगार शामिल हैं, जो पूरी तरह निराश हो चुके हैं और जिनके पास आय का कोई अन्य साधन नहीं है।
  • चौथी श्रेणी में भिक्षावृत्ति करने वाले ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने इसे अपना धंधा बना रखा है और बिना कुछ किए, इसे ही अपनी कमाई का साधन मानते हैं।
  • पाँचवी श्रेणी में ठगी करके, पैसा इकठ्ठा करने की कोशिश करने वाले लोग हैं।
  • छठी श्रेणी में असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंसे ऐसे लोग हैं, जिनसे अलग-अलग स्थानों पर, नियोजित ढंग से भीख मंगवाई जाती है और अपराधी तत्व, उस भीख का बहुत थोड़ा हिस्सा, उन भीख मांगने वालों को दे देते हैं।

जीने का अधिकार बनाम भिक्षावृत्ति

जीविकोपार्जन का अधिकारः अनुच्छेद 21 के अनुसार राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को आश्रय की सुविधा, भोजन का अधिकार, जीविकोपार्जन का अधिकार प्रदान करे। यद्यपि कार्य करने का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में घोषित नहीं किया गया है लेकिन यह राज्य का पुनीत कर्त्तव्य है कि वह जनकल्याण के लिए समाज के गरीब, कमजोर वर्गों, दलित तथा जनजातियों को आजीविका का पर्याप्त संसाधन प्रदान करें तथा उनके बीच संसाधनों का न्यायिक वितरण सुनिश्चित करें।

आश्रय का अधिकारः राज्य का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक दलित और आदिवासी को आश्रय की सुविधा प्रदान करे।

भिक्षावृत्ति के संबंध में कानूनी प्रावधान

महाराष्ट्र ने भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 पारित किया था, जिसके अनुसार भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी में रखा गया था। इसी कानून को 1960 में दिल्ली ने भी अपनाया। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि देश में अब तक भिक्षावृत्ति के संदर्भ में कोई केन्द्रीय कानून नहीं हैं। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 को ही आधार बनाकर 20 राज्यों और 2 केन्द्रशासित प्रदेशों ने भी अपने यहाँ कानून बनाये हैं।

बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट के प्रमुख प्रावधान

  • यह अधिनियम भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करता है। इस अधिनियम में भिक्षावृत्ति की परिभाषा में ऐसे व्यक्ति को शामिल किया गया है, जो गाना गाकर, नृत्य करके, नाटक या तमाशा दिखाकर भीख माँगता है।
  • आजीविका का कोई साधन न होने और सार्वजनिक स्थलों पर इधर-उधर भीख माँगने की मंशा से घूमना भी भिक्षावृत्ति में शामिल है।
  • इस कानून के तहत भिक्षावृत्ति करते हुए पकड़े जाने पर पहली बार में तीन साल तक के लिए और दूसरी बार में दस साल तक के लिए व्यक्ति को सजा के तौर पर पंजीकृत संस्था में भेजने का कानून है।
  • पकड़े गए व्यक्तियों के आश्रितों को भी पंजीकृत संस्था में भेजा जा सकता है। इसमें प्रमुख प्रावधान यह भी है कि इन संस्थाओं को भी कुछ शक्तियाँ उपलब्ध करायी गयी हैं जैसे- संस्था में लाए गये व्यक्तियों से कार्य करवाना, अगर व्यक्ति नियमों का पालन न करें तो उसे जेल भी भेजा जा सकता है।
  • ये सभी प्रावधान महाराष्ट्र में सार्वजनिक स्थलों पर भीख माँग रहे और घातक बीमारियों से लड़ रहे भिखारियों को एक निश्चित स्थान पर ले जाकर उन्हें इलाज व अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करने के लिए किये गए थे।

दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय

वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 (Bombay Prevention of Begging Act, 1959) की 25 धाराओं को समाप्त कर दिया है। साथ ही, भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण को असंवैधानिक करार दिया है। उच्च न्यायालय ने यह निर्णय भिखारियों के मौलिक अधिकारों और उनके मानवाधिकारों के संदर्भ में दिया है।

मौजूदा कानून में समस्याएँ

  • इसमें पहली समस्या भिक्षावृत्ति की परिभाषा को लेकर है। गायन, नृत्य, तमाशा आदि कुछ समुदायों के लिए आजीविका के साधन हैं। ये व्यवसाय अन्य व्यवसायों से मेल नहीं खाते हैं, सिर्फ इसलिए ऐसे लोगों को अपराधी मान लेना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है।
  • किसी असहाय और गरीब व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण कर देना और सार्वजनिक स्थलों पर जाने से रोकना अनुच्छेद 14 के तहत ‘समानता का अधिकार’ और अनुच्छेद 19 के तहत ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ के विरुद्ध है।
  • भारतीय संविधान के कुछ प्रावधान कल्याणकारी राज्य की भूमिका प्रदर्शित करते हैं। ऐसे में एक कल्याणकारी राज्य का दायित्व होना चाहिए कि वह अपने नागरिकों को भोजन, आवास और रोजगार प्रदान कर उनकी आजीविका को सुनिश्चित करें।
  • भारत में भिखारियों की संख्या काफी ज्यादा है। भारत में बड़ी संख्या में भिखारियों का होना सरकार की कल्याणकारी राज्य की भूमिका निभाने पर प्रश्न चि“न लगाता है।

बढ़ती भिक्षावृत्ति के कारण

  • गरीबीः पिछले कुछ दशकों में गरीबी के स्तर में गिरावट तो हुई है, लेकिन अमीर व गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। 37.2 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, साथ ही विश्व के 1/3 (एक तिहाई) गरीब लोगों की आबादी भारत में है।
  • मानव-तस्करीः मानव तस्करी भी देश में बड़े स्तर पर फैली हुई है, जो बलात श्रम करवाने और भीख मँगवाने के लिए की जाती है।
  • बेरोजगारीः भारत में मुख्यतः संरचनात्मक बेरोजगारी, अल्प बेरोजगारी, चक्रीय तथा छिपी हुई बेरोजगारी पायी जाती है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 से लेकर वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान पुरुष कार्यबल में कमी देखी गयी है।
  • प्राकृतिक आपदाएं: कई बार अकाल, सूखा तथा बाढ़ के कारण भी कुछ लोग भीख माँगने पर मजबूर हो जाते हैं।
  • अशिक्षाः देश में अभी भी सभी लोगों तक शिक्षा नहीं पहुँच पाने के कारण लोगों को अनेक घृणित कार्य करने पड़ते हैं। वर्तमान समय में भी भारत की लगभग 74 प्रतिशत जनसंख्या शिक्षित है, बाकी (लगभग 26 प्रतिशत) लोग अशिक्षित हैं, यह भी एक कारण है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में भिक्षावृत्ति की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही है।
  • अन्य कारणः भिक्षावृत्ति शुरू करने हेतु न तो किसी पूंजी और न ही किसी श्रम की आवश्यकता होती है। कुछ लोग काम के प्रति अनिच्छा और अलगाव की ओर झुकाव के कारण भी भीख माँगते हैं।

प्रभाव

सामाजिक प्रभावः समाज में बढ़ती भिक्षावृत्ति का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना होता जा रहा है। बड़े पैमाने पर भिक्षावृत्ति धंधा बन चुकी है, जिसके अन्तर्गत समाज में अनेक बुराईयाँ जन्म ले रही हैं जैसे-शिक्षित भिखारियों की बढ़ती संख्या, साथ ही भिखारियों में बच्चों की तादाद भी अच्छी खासी है। बड़ी संख्या में बच्चे संगठित गिरोह का शिकार हो रहे हैं, जो उन्हें डरा-धमका कर तथा उनका अंग-भंग करके उनसे भिक्षावृत्ति करवा रहे हैं। इसके कारण बच्चों के शोषण व अपहरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जिससे समाज में अनेक अपराध जन्म ले रहे हैं जैसे कि- मानव तस्करी, बाल अपराध तथा यौन शोषण आदि। मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल जिन बच्चों का अपहरण किया जाता है, उन्हें भीख माँगने के अलावा कारखानों में अवैध बाल मजदूरी, घरों व दफ्रतरों में नौकर, पॉर्न उद्योग, वैश्यावृत्ति, अंग बेचने वाले माफियाँ और जबरन बाल विवाह के जाल में फँसाया जाता है। इसके अलावा कुछ बच्चे आपराधिक गतिविधियों जैसे- ड्रग्स, हत्या और लूट में भी संलिप्त हो जाते हैं।

आर्थिक प्रभावः वर्तमान समय में अगर भारतीय अर्थव्यवस्था को देखा जाए तो यह विश्व में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इसके बावजूद भारत में एक बड़ा मानवपूँजी भारत के विकास का हिस्सा नहीं बन पा रहा है। भारत सरकार द्वारा चलायी जा रही अनेक योजनाएँ भी उचित रूप से क्रियान्वित नहीं हो पा रही हैं। इन योजनाओं में खर्च तो बराबर हो रहा है परन्तु इनका लाभ पूर्ण रूप से नहीं मिल पा रहा है, जो हमारे देश के विकास में बाधा उत्पन्न करता है। भिक्षावृत्ति के कारण देश के पर्यटन पर भी गलत प्रभाव पड़ता है।

मनोवैज्ञानिक प्रभावः भीख माँगने वाले लोग आमतौर पर गरीबी, बेरोजगारी, बेघर, अशिक्षा और कई सामाजिक बुराईयों जैसे- अपराध, नशा व तस्करी से जुड़े रहते हैं, जिसके कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग और बहुत से रोगों (कुष्ठ, मिर्गी, त्वचा) से पीडि़त होते हैं। उनमें मानसिक तौर पर अलगाव तथा कुण्ठा की भावना घर कर जाती है। महिलाएँ भी अश्लीलता, अनुचित शब्द, यौन शोषण तथा उत्पीड़न का शिकार होती हैं। इनके बच्चों का भी शारीरिक व मानसिक विकास नहीं हो पाता है और वे कुपोषण, अशिक्षा तथा अनेक रोगों (कम लम्बाई, वजन में कमी तथा मानसिक विकार) से पीडि़त होते हैं।

सरकारी प्रयास

  • मानव तस्करी को भारतीय दण्ड संहिता (1860) के अन्तर्गत एक अपराध घोषित किया गया है।
  • संशोधित किशोर न्याय कानून, 2015 में बाल भिक्षावृत्ति के खिलाफ सख्त प्रावधान किए गए हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के अनुसार बाल भिक्षावृत्ति पर अंकुश लगाने हेतु संशोधित कानून का प्रभावी क्रियान्वयन जरूरी है। संशोधित कानून की धारा-76 के तहत बाल भिक्षावृत्ति के लिए दोषी को पाँच साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है। बच्चों के अंग-भंग करके उनसे भिक्षावृत्ति कराने के लिए दोषी को सात से दस साल तक की कैद और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
  • आयोग चिल्ड्रेन हेल्पलाइन, गैर सरकारी संगठनों और प्रशासन के साथ मिलकर भिक्षावृत्ति पर अंकुश लगाने का प्रयास करेगा।
  • देश के 20 राज्य व 2 केन्द्रशासित प्रदेश भिक्षावृत्ति के खिलाफ कानून बना चुके हैं। उत्तर प्रदेश में म्युनिसिपलिटी एक्ट, पंजाब-हरियाणा में भिक्षावृत्ति निरोधक अधिनियम 1971, मध्य-प्रदेश में 1969-1973 में बने कानून तथा पश्चिम बंगाल में 1943 में बने कानून लागू है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-133 भी कहती है कि जो व्यक्ति भीख माँगने हेतु अनुचित प्रदर्शन करते हुए पाए जाएँगे, वे दण्ड के भागी होंगे।
  • भारतीय रेल अधिनियम भी भिक्षावृत्ति का निषेध करता है।
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बच्चों के भिक्षावृत्ति पर रोक लगाने हेतु राजधानी दिल्ली से एक देशव्यापी मुहिम शुरू करने जा रहा है।

चुनौतियाँ

  • सरकार के पास ऐसे आँकड़े मौजूद नहीं हैं जिनसे यह पता किया जाए कि भिक्षावृत्ति मजबूरी है या व्यवसाय।
  • समाज को आदर्श रूप बनाने के लिए ही बाल मजदूरी और भिक्षावृत्ति रोकने के लिए विशेष योजना बनायी गयी थी लेकिन तथ्य और प्रमाण साबित कर रहे हैं कि यह लक्ष्य हासिल करने में सरकारें विफल रही हैं।
  • जिन राज्यों में भिक्षावृत्ति निरोधक कानून बने हुए हैं वे राज्य सही तरीके से इन कानूनों को अमल में आज तक नहीं ला सके हैं।
  • दिल्ली, नोएडा, गुड़गाँव, मुम्बई, कोलकाता आदि शहरों में भीख माँगने वाले गिरोह काफी सक्रिय हैं। इन गिरोहों के मुखिया की पहुँच राजनीति में भी सक्रिय रूप से दिखाई देती है, फलस्वरूप प्रशासन प्रभावपूर्ण कार्रवाई नहीं कर पाता है।
  • लोगों में नाकारेपन, आलस्य और कामचोरी की प्रवृत्ति सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं व विकास कार्यों तक सभी लोगों की पहुँच न होना।
  • सरकार और विभिन्न संगठनों का दावा है कि भीख को खत्म करने हेतु अनेक उपाय किए गए हैं और यह कुछ हद तक सफल रहे हैं लेकिन भीख माँगना अभी भी जारी है, जिसके हम भी दोषी हैं।

आगे की राह

  • भिक्षावृत्ति को खत्म करके भारत की विश्व रिपोर्टों में जो स्थिति है उसमें भी सुधार किया जा सकता है, जैसे-ग्लोबल हंगर इंडेक्स, जीवन प्रत्याशा और शिशु मृत्यु दर इत्यादि। इससे भारत के सामाजिक, आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • रोजगारों की संख्या बढ़ाकर, लोगों को उनके कौशल के आधार पर रोजगार उपलब्ध कराया जाये।
  • भिखारियों का पुनर्वास हो साथ ही उन्हें रोजगार से जोड़ा जाना चाहिए।
  • भिक्षावृत्ति निरोधक कानूनों का सख्ती से पालन होना चाहिए।
  • सरकार-प्रशासन के साथ-साथ आमजन को भी भिक्षावृत्ति को बढ़ने से रोकना होगा।
  • गरीबी उन्मूलन हेतु सरकारी योजनाओं (पीडीएस, मनरेगा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) आदि का क्रियान्वयन उचित तरीके से होना चाहिए।
  • बढ़ती जनसंख्या नियंत्रण हेतु सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
  • वृद्ध लोगों के लिए वृद्धाश्रम व्यवस्था सही तरीके से हो और वृद्धावस्था पेंशन योजना तक सभी वृद्ध लोगों की पहुँच सुनिश्चित करना चाहिए।
  • राजस्थान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की कुछ योजनाओं के जरिए भिक्षावृत्ति में लिप्त बच्चों का पालन पोषण किया जा रहा है। इनमें पालनहार योजना, निराश्रित बाल गृह, शिशु गृह योजना और पालन गृह योजना आदि शामिल हैं। इस तरह की योजनाओं को विभिन्न राज्य सरकारों को अपनाने की जरूरत है।
  • बॉम्बे प्रिवेंशन बेगिंग एक्ट पूरी तरह से लोगों की परेशानी को दूर करने में नाकाम रहा है। यह एक्ट भीख मँगवाने वाले गिरोहों को रोकने में असफल रहा है इसलिए इस पर केन्द्रीय कानून की आवश्यकता है, जो गरीब लोगों तथा भीख माँगने वाले लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करे और उन्हें इस अंधकार से मुक्त कराये।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2

  • केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन, इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिए गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
  • गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे।

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