जयंती विशेष: रानी गाइदिनल्यू - नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई (Rani Gaidinliu - Lakshmibai of Nagaland) : डेली करेंट अफेयर्स

26 जनवरी या 15 अगस्त …. ये कुछ ऐसे मौके होते हैं जब हम अपने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने और क़ुर्बान होने वाले स्वतंत्रता सैनानियों को याद करते हैं। स्वतंत्रता संग्राम का ज़िक्र होते ही कई नाम हमारे ज़हन में कौंध जाते हैं लेकिन दुर्भाग्य से कुछ नाम ऐसे भी हैं जिनका योगदान तो किसी से कम नहीं, लेकिन फिर भी वे हमारे लिए गुमनाम से रह जाते हैं।

‘नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई’ यानी रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के नुन्ग्काओ (लोंग्काओ) नाम के एक गांव में हुआ था। इस महान क्रांतिकारी ने मात्र 13 साल की उम्र में ही क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया और अपने चचेरे भाई जादोनांग के ‘हेराका’ आंदोलन से जुड़ गयी।

हेराका आंदोलन का लक्ष्य प्राचीन नागा धार्मिक मान्यताओं को फिर से बहाल कराना और उन्हें एक नई जिंदगी प्रदान करना था। शुरुआत में, जादोनांग द्वारा चलाया गया यह आंदोलन धार्मिक प्रकृति का था, लेकिन धीरे-धीरे यह राजनीतिक हो गया और इसके जरिए अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया। आंदोलनकारियों ने मणिपुर और नागा क्षेत्रों से अंग्रेजों को बाहर खदेड़ना शुरू कर दिया। आंदोलन के दौरान रानी गाइदिनल्यू की ख्याति इतनी बढ़ गई कि उन्हें जनजाति क्षेत्र में विख्यात चेराचमदिनल्यू देवी का अवतार माना जाने लगा। जल्द ही जादोनांग को गिरफ्तार कर फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसके बाद, ‘हेराका’ आंदोलन की बागडोर रानी गाइदिन्ल्यू के हाथ में आ गई। वे इस आंदोलन की आध्यात्मिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी बन गई।

रानी ने अपने समर्थकों और स्थानीय नागा नेताओं के साथ मिलकर अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने न केवल नागाओं की पैतृक परंपराओं को बढ़ावा दिया, बल्कि नागाओं द्वारा ईसाई धर्म अपनाने का भी विरोध किया। इसके साथ ही रानी ने ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का भी मुखर विरोध किया था। रानी गाइदिन्ल्यू के प्रयासों से त्रस्त होकर ब्रिटिश सरकार ने उनके सर पर इनाम की घोषणा कर दी। जल्द ही रानी गाइदिन्ल्यू को उनके कई समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। साल 1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शिलांग जेल में उनसे मुलाकात की और उनकी रिहाई के लिए काफी कोशिशें की। बता दें कि पंडित जवाहरलाल नेहरु ने ही रानी गाइदिन्ल्यू को ‘रानी’ की उपाधि दी थी। खैर … उस वक्त रानी को रिहा नहीं कराया जा सका। साल 1933 से लेकर 1947 तक रानी को अलग-अलग जेलों में कैद रखा गया। 1946 में जब अंतरिम सरकार का गठन किया गया, उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु के निर्देश पर रानी गाइदिनल्यू को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के बाद रानी ने अपने क्षेत्र के लोगों के विकास और उत्थान के लिए काम करना शुरू किया।

यहां एक और रोचक बात आपको बता दें कि रानी गाइदिनल्यू नागा नेशनल कौंसिल (NNC) का मुखर विरोध करती थीं, क्योंकि वे नागालैंड को भारत से अलग कर एक स्वतंत्र राष्ट्र की वकालत करते थे। जबकि रानी गाइदिनल्यू ज़ेलिआन्ग्रोन्ग समुदाय के लिए भारत के भीतर ही स्वायत्त क्षेत्र की मांग करती थी। भारत सरकार के द्वारा उन्हें ‘ताम्रपत्र स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कार’, पद्म भूषण और ‘विवेकानंद सेवा पुरस्कार’ प्रदान किया गया। अखंड भारत के अंदर नागा रीति-रिवाजों, आस्थाओं और परपंराओं के संरक्षण के लिए काम करने वाली इस महान महिला का 17 फरवरी, 1993 को निधन हो गया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के कारण रानी गाइदिनल्यू को ‘नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई’ भी कहा जाता है।