ईस्टर्न इकोनामिक फोरम (Eastern Economic Forum) : डेली करेंट अफेयर्स

बीते 9 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईस्टर्न इकोनामिक फोरम को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए संबोधित किया। व्लादिवोस्तोक में आयोजित सातवें पूर्वी आर्थिक मंच के पूर्ण सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत आर्कटिक क्षेत्रों में रूस के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत करने का इच्छुक है।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में क्या कहा?

भारत-रूस संबंध प्रधानमंत्री ने कहा कि ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग की अपार संभावनाएं हैं। ऊर्जा के साथ-साथ भारत ने रूस के सुदूर पूर्व में औषधि और हीरे के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण निवेश किया है। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि साल 2019 में भारत ने अपनी 'एक्ट फार-ईस्ट नीति' की घोषणा की थी। इस नीति की घोषणा के बाद, रूस के सुदूर पूर्व के साथ भारत का सहयोग विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ा है। इस महीने व्लादिवोस्तोक में भारत के वाणिज्य दूतावास की स्थापना के तीस साल पूरे हो रहे हैं। भारत इस शहर में वाणिज्य दूतावास खोलने वाला पहला देश था। इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से ही, भारत ने कूटनीति और बातचीत का रास्ता अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

क्या है पूर्वी आर्थिक मंच?

पूर्वी आर्थिक मंच की शुरुआत साल 2015 में रूस के राष्ट्रपति ब्लादमिर पुतिन की पहल पर किया गया। इस मंच को रूस के सुदूर पूर्व में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। इस फोरम का लक्ष्य रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता के मद्देनज़र आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विस्तार करना है। इसका आयोजन हर साल रूस के व्लादिवोस्तोक शहर में किया जाता है।

रूस के फार ईस्ट क्षेत्र के बारे क्या खास है?

रूस का यह सुदूर-पूर्व क्षेत्र बैकाल झील और प्रशांत महासागर के बीच स्थित एक बड़ा भू-भाग है। इस क्षेत्र की दक्षिणी सीमा मंगोलिया, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया से मिलती है। उत्तर-पूर्व में इसकी समुद्री सीमा जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ लगती है। साइबेरिया क्षेत्र में होने कारण यहाँ की जलवायु काफी ठंडी है जिसके कारण यहाँ पर जीवन-यापन की जरुरी सुविधाओं का अभाव है। इसलिए यहाँ बेहद कम आबादी पायी जाती है।

कम आबादी के बावजूद यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधन जैसे खनिज, तेल और गैस के मामले में सम्पन्न है। इसके अलावा रूस के लगभग 30% जंगल भी इसी क्षेत्र में आते हैं। रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यह क्षेत्र काफी निर्णायक हो सकता है। इसलिए इस क्षेत्र के महत्व को समझते हुए रूस यहाँ विदेशी निवेश आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है। साथ ही, रूस का लक्ष्य इस क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक संसाधन का पता लगाकर विदेशी निवेश के ज़रिए इनका दोहन कर इसे अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में उतारने की है।

इस क्षेत्र में निवेश करके भारत को क्या फायदा है?

दरअसल रूस के इस सुदूर पूर्वी क्षेत्र में चीन सबसे बड़ा निवेशक है। इस संबंध में रूस और चीन के बीच बढ़ती सक्रियता के बीच यह तथ्य गौर करने लायक है कि यहां हुए कुल विदेशी निवेश का तकरीबन 70 फ़ीसदी हिस्सा चीन का ही था। अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से वैश्विक पटल पर रूस की भूमिका जहाँ सीमित होती जा रही है, वहीं चीन द्वारा इस क्षेत्र में निवेश से रुस का रुझान चीन की तरफ बढ़ा है। ऐसी स्थिति में भारत की इस क्षेत्र में मौजूदगी से एक संतुलन बनेगा। साथ ही ये भारत के आर्थिक और सामरिक हित में भी है।

‘एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी’ क्या है?

साल 2019 में अपनी रूस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र में विकास कार्यों को गति देने के लिए अपनी एक नई नीति का ऐलान किया था। इसका ज़िक्र उन्होंने अपने हालिया भाषण में भी किया है। दरअसल रूस से रिश्तों को और अधिक मज़बूत करने के लिये ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ की तर्ज पर प्रधानमंत्री द्वारा ‘एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी’ की शुरुआत की गई।

भारत-रूस संबंध किस तरह का है?

आज़ादी के बाद से ही भारत और रूस का संबंध काफ़ी बेहतर स्थिति में रहे हैं। भारत-रूस राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा, व्यापार और अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, तथा संस्कृति समेत द्विपक्षीय संबंधों के लगभग सभी क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में खासकर कोविड के बाद के दौर में भारत-रूस संबंधों में थोड़ी गिरावट नज़र आई है। इसका सबसे बड़ा कारण रूस के चीन और पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। इस नजदीकी ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के लिए कई भू-राजनीतिक मुद्दों पर एक बार फिर से ध्यान देने की ज़रूरत की ओर इशारा किया है। भारत और रूस के बीच ज्यादातर रक्षा व्यापार ही होता है इसलिये दूसरे क्षेत्र उपेक्षित हैं। इससे इन दोनों देशों के बीच के संबंधों में थोड़ा असंतुलन पैदा हो रहा है। भारत की अमेरिका से बढ़ती नजदीकियां भी रूस के लिए चिंता का सबब है।