देश का पहले ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट (Country's First Greenfield Grain Based Ethanol Plant) : डेली करेंट अफेयर्स

बीते 1 मई को बिहार के पूर्णिया जिले में मोटे अनाज से संचालित देश के पहले एथेनॉल संयंत्र का उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि एथेनॉल के उत्पादन से राज्य में पेट्रोल की लागत कम होगी और रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।

पूर्णियां के कृत्यानंद नगर के परोरा में ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा. लि. (EIBPL) द्वारा 105 करोड़ की लागत से इस प्लांट की स्थापना की गई। यह बिहार सरकार की एथेनॉल उत्पादन और संवर्धन नीति-2021 को केन्द्र सरकार द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद स्थापित देश का पहला ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट है। इसकी उत्पादन क्षमता 65 हजार लीटर प्रतिदिन है। साथ ही, इस प्लांट से प्रतिदिन 27 टन डीडीजीएस यानी एनीमल फीड बनाने के लिए जरूरी पोषक तत्व का उत्पादन बायप्रोडक्ट के रुप किया जाएगा। यानी नवीनतम प्रौद्योगिकी वाले इस संयंत्र से कोई अवांछित अपशिष्ट नहीं निकलेगा। इस संयंत्र में किसानों से प्रतिदिन चावल की एक सौ तीस टन भूसी और डेढ़ सौ टन चावल अथवा मकई की खरीद की जाएगी।

इस प्लांट में तैयार इथेनॉल को ऑयल मार्केटिंग कम्पनीज जिनमें इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम शामिल हैं, उन्हें बेचा जाएगा। इसके लिए तेल मार्केटिंग कंपनियों से 10 साल का करार किया गया है। गौरतलब है कि बिहार इथेनॉल उत्पादन प्रोत्साहन नीति 2021 के तहत पहले चरण में 17 इथेनॉल उत्पादन इकाइयां स्थापित की जा रही हैं, जिसमे से चार बनकर तैयार हो गई हैं।

एथेनॉल एक अल्कोहल आधारित ईंधन होता है। इसे जैव ईंधन भी कहा जाता है। पेट्रोल की जलनशीलता बढ़ाने के लिए उसमें एथनॉल डाला जाता है। इसे अलग-अलग अनुपात में पेट्रोल के साथ मिलाकर गाड़ियों में ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैव ईंधन का मतलब ये हुआ कि इसे स्टार्च और शुगर के फर्मेंटेशन से बनाया जाता है। इसे बनाने में आमतौर पर गन्ना, मक्का और बाकी शर्करा वाले पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। ये पेट्रोल के मुकाबले सस्ता भी होता है और कार्बन भी कम उत्सर्जित करता है।

बात इसके फायदों की करें तो पेट्रोल में एथेनाल के मिश्रण से पेट्रोल की खपत में कमी आती है और साथ ही, भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलता है, क्योंकि एथेनॉल बनाने के लिए गन्ना, मक्का, कपास के डंठल, गेंहू का भूसा, खोई और बांस का उपयोग किया जाता है। ऐसे में, अगर बिहार समेत देश के बाकी इलाकों में एथेनॉल का इस्तेमाल बढ़ा तो न केवल किसानों को फायदा होगा, बल्कि प्रदूषण में भी कमी आएगी।