यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954)

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954)

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954)

चर्चा का कारण

  • हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत शादी के लिए 30 दिन पहले नोटिस का अनिवार्य प्रकाशन कराना स्वतंत्रता और निजता के बुनियादी अधिकार का उल्लंघन मानते हुए इसे वैकल्पिक करार दिया है।

उच्च न्यायालय का फैसला

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि अब भावी पक्षों के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 5 और 6 के तहत विवाह से 30 दिन पूर्व नोटिस जारी करना वैकल्पिक होगा, न कि अनिवार्य।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि विवाह में शामिल दोनों पक्ष राज्य या गैर राज्य अभिकर्ताओं के हस्तक्षेप के बिना अपना जीवनसाथी चुन सकते हैं, जबकि उपरोक्त प्रावधानों से इसमें अड़चन आती हैं।
  • इसके अलावा न्यायालय ने यह भी कहा कि धर्मनिरपेक्ष कानून के बावजूद देश में अधिकांश विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार होते हैं। न्यायालय ने कहा कि जब धर्म संबंधी व्यक्तिगत कानूनों के तहत विवाह से संबंधित नोटिस जारी करने अथवा आपप्ति दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है तो ऐसी आवश्यकता देश के धर्मनिरपेक्ष कानून में नहीं होनी चाहिए।
  • न्यायालय ने विवाह अधिकारी को निर्देश दिया गया है कि यदि दोनों पक्ष लिखित रूप में नोटिस के प्रकाशन हेतु अनुरोध नहीं करते हैं तो विवाह अधिकारी इस तरह के नोटिस को प्रकाशित नहीं करेगा अथवा विवाह को लेकर आपत्तियाँ दर्ज नहीं करेगा। हालाँकि यदि विवाह अधिकारी को कोई संदेह हो तो वह तथ्यों के अनुसार उपयुक्त विवरण/प्रमाणपत्र मांग कर सकता है।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में समस्या क्या?

  • जब एक ही धर्म के लोग शादी करते हैं तो उनकी शादी एक ही दिन में हो जाती है, लेकिन अगर अलग-अलग धर्म के लोग शादी करते हैं तो उसमें तीस दिन का समय लगता है। ऐसे में, इस प्रावधान को शादी के इच्छुक जोड़ों की निजता के अधिकार का उल्लंघन और भेदभावपूर्ण माना जा रहा है।
  • साथ ही, जो जोड़ा शादी कर रहा होता है वो भावनात्मक रूप से और कई बार आर्थिक और परिवार की तरफ से भी संघर्ष कर रहा होता है।
  • ऐसे में, वह स्वंय ही नहीं बल्कि उसका परिवार भी , अराजक तत्वों के निशाने पर आ जाते हैं। जहाँ उन पर अपने ही धर्म में शादी का दबाव डाला जाता है।
  • इसके अलावा, ये भी देखा गया है कि लड़की चाहे किसी भी समुदाय की हो परेशानी सबसे ज्यादा उसे ही उठानी पड़ती है।

निर्णय का आधार एवं प्रभाव

  • एक मुस्लिम छात्र से शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपनाने वाली हादिया, विवाह मामलें (2018) में उच्चतम न्यायालय ने जीवनसाथी चुनने के अधिकार को एक मूल अधिकार माना था।
  • इससे अंतर-धार्मिक एवं अंतर्जातीय विवाह में आने वाली बाधायें कम होंगी, जिससे धर्मनिरपेक्षता और समानता को मजबूती मिलेगी। साथ ही असामाजिक तत्त्व और तथाकथित समाज के ठेकेदारों पर प्रतिबंध लगेगा।
  • विशेष विवाह की कठिनाईयों से धर्म परिवर्तन की घटनायें होती थी, उसमें भी रूकावट आयेगी। इसके अलावा महिलाओं पर होने वाली परिवारिक हिंसा में कमी आयेगी।

क्या है विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4,5 ?

  • विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, दोनों पक्षों में से किसी एक का कोई जीवनसाथी नहीं होना चाहिये व दोनों वयस्क हों जिससे वह अपने विषय में निर्णय लेने में सक्षम हों।
  • इसके अतिरिक्त पुरुष की आयु कम से कम 21 और महिला की आयु कम से कम 18 होनी चाहिए।
  • दोनों पक्ष उन कानूनों के तहत, जो उनके धर्म विशेष पर लागू होता है, निर्धारित निषिद्ध संबंधों, जैसे-अवैध या वैध रक्त संबंध, गोद लेने से संबंधित व्यत्तिफ़, में नहीं होना चाहिये।
  • विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5 के अनुसार विवाह के लिए इच्छुक पक्षकारों द्वारा जिले के विवाह-अधिकारी को एक सूचना दी जानी आवश्यक है। इसके अलावा, विवाह हेतु आवेदन करने वाले पक्षकार को जिले में, सूचना दिए जाने की तिथि से, तीस दिनों से अधिक समय से निवास करना आवश्यक होता है।