यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (विषय: 10वीं अनुसूची के तहत राजनीतिक दलों का विलय (Merger of Political Parties under 10th Schedule)

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): 10वीं अनुसूची के तहत राजनीतिक दलों का विलय (Merger of Political Parties under 10th Schedule)

10वीं अनुसूची के तहत राजनीतिक दलों का विलय (Merger of Political Parties under 10th Schedule)

चर्चा का कारण

  • हाल ही में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल होने वाले अपने 6 विधायकों को वापस लाने के लिए भारत के सर्वाेच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
  • इस संदर्भ में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा विधानसभा अध्यक्ष, राज्य विधानसभा सचिव तथा छह विधायकों को नोटिस भी जारी किया गया है।

पृष्ठभूमि

  • पिछले विधान सभा चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी ने राजस्थान में छह सीटें जीतीं, लेकिन बसपा के सभी विधायक पिछले वर्ष सितंबर में कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। ऐसे में यदि छह विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया, तो सदन की प्रभावी शक्ति और सत्ताधारी दल का बहुमत कम हो जाएगा।
  • हालांकि, स्पीकर ने अयोग्य ठहराए जाने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।

विवाद

  • बसपा यह तर्क दे रही है कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का विलय किए बिना राष्ट्रीय पार्टी की राज्य इकाई का विलय नहीं किया जा सकता है। पार्टी का तर्क है कि विधायक ना तो पार्टी छोड़कर गए, ना ही अलग पार्टी बनाई बल्कि उन्होंने विलय किया है जो कानूनी रूप से गलत है।
  • इसके अलावा, बसपा के राष्ट्रीय सचिव ने छह विधायकों को व्हिप जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि बहुमत परीक्षण होने पर वे कांग्रेस के विरुद्ध मतदान करें।

पूर्ववत मामले

  • जगजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य, 2006 का निर्णयः
  • इस वाद में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा एकल सदस्यीय पार्टियों के चार विधायकों जो चुनाव जीतने के पश्चात कांग्रेस में सम्मिलित हो गए थे, को अयोग्य घोषित करते हुए विधानसभा की सदस्यता निरस्त कर दी गयी थी।
  • राजेंद्र सिंह राणा और अन्य बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य, 2007 का निर्णयः
  • वर्ष 2003 में उत्तरप्रदेश में बसपा के 37 विधायक (पार्टी की कुल सदस्य संख्या के एक-तिहाई), समाजवादी पार्टी को समर्थन देने के लिए, अपनी पार्टी से अलग हो गए थे। उच्चत्तम न्यायलय ने निर्णय दिया कि, इस विभाजन को मान्यता नहीं दी सकती है, क्योंकि सभी विधायक एक साथ पार्टी से अलग नहीं हुए हैं।
  • इन मामलों में स्पीकर के निर्णयों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। यहां स्पीकर के निर्णय को चुनौती नहीं दी गई और ना ही कोई आपत्ति जताई गई। इसलिए इस परिस्थिति में सुप्रीम कोर्ट के पिछले दो निर्णय लागू नहीं होते हैं। साथ ही ये मामले अलग थे। उनमें दो-तिहाई सदस्यों की बात भी नहीं थी।

10वीं अनुसूची में विलय का प्रावधान

  • संविधान की दसवीं अनुसूची सरकारों की स्थिरता की रक्षा के लिए दलबदल पर रोक लगाती है लेकिन विलय पर रोक नहीं लगाती है।
  • यदि कोई सदस्य ‘विलय’ (merger) के परिणामस्वरूप एक दल से दूसरे दल में शामिल हो जाता है, तो ऐसा विलय तभी वैध माना जाएगा जब उस दल के कम से कम दो-तिहाई सदस्य अलग होकर नये दल में विलय करें।

आगे की राह

  • इस संबंध में राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शिव कुमार शर्मा कहते हैं, फ्पहले तो ये समझना जरूरी है कि ये मामला दल-बदल कानून के तहत नहीं आता। अगर किसी भी दल के दो-तिहाई सदस्य दूसरे दल में विलय करना चाहते हैं तो दसवीं अनुसूची उन्हें अधिकार देती है। राजस्थान में तो सभी सदस्यों ने ही विलय कर लिया था। स्पीकर ने उन्हें विलय की अनुमति भी दे दी थी।
  • फ्लेकिन, फिर भी बसपा इन विधायकों के विलय को लेकर स्पीकर के फैसले को चुनौती दे सकती है। ऐसे में बसपा के लिए बेहतर होगा कि वो व्हिप जारी करने के बजाए विलय के फैसले को चुनौती दे।य्
  • इसके अलावा अगर व्हिप जारी करने के बावजूद भी छह विधायक कांग्रेस के पक्ष में वोट देते हैं तो भी बसपा के पास क्या विकल्प बचता है? क्योंकि व्हिप के उल्लंघन के बावजूद भी सदस्यों का वोट गिना जाता है। हालांकि, विधायकों की अयोग्यता की कार्रवाई शुरू की जा सकती है, इसमें भी बसपा विधानसभा स्पीकर से ही अपील कर सकती है।