यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (विषय: विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता (Disqualification of Members of Legislative Assembly)

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता (Disqualification of Members of Legislative Assembly)

विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता (Disqualification of Members of Legislative Assembly)

चर्चा का कारण

  • हाल ही में राजस्थान में ऐेसी राजनीतिक परिस्थितियां उभरकर सामने आयीं हैं, जिससे विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मुद्दा फिर से उभरकर सामने आया है।

पृष्ठभूमि

  • गौरतलब है की 2018 के अंत में राजस्थान में विधानसभा के चुनाव हुए थे जिसमे कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी। परन्तु हाल ही में राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट आरै उनके समथर्क विधायकाें ने कुछ ऐसे कार्य किये जिससे राजस्थान के मुख्यमंत्री ने उन पर सरकार गिराने का आरोप लगाया।
  • इसके उपरांत राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने अपने विधायक दल की बैठक बुलाई और व्हिप भी जारी कर दिया परन्तु इस बैठक में उनके पूर्व उप-मुख्यमंत्री और उनके समर्थक विधायक शामिल नहीं हुए। जिसके परिणाम स्वरुप एक विधायक ने राजस्थान विधानसभा स्पीकर के समक्ष बागी विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द करने हेतु याचिका दायर कर दी।

विधानसभा की सदस्यता रद्द करने से संबंधित कानून/नियम

  • लोकसभा ने सदन में अनुशासन बनाये रखने हेतु 1985 में कुछ नियम बनाये थेः
  • लोकसभा के नियम संख्या 6 में वर्णित है कि कोई भी सांसद किसी अन्य सांसद/ सांसदों के विरुद्ध अयोग्यता से संबंधित याचिका दायर कर सकता है किन्तु उसे उक्त सांसद /सांसदों की अयोग्यता के लिए ठोस कारण भी अपनी याचिका में उल्लििखत करने होंगे।
  • इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष उक्त सांसद /सांसदों को नोटिस जारी करता है और सुनवाई के बाद योग्यता एवं अयोग्यता से संबंधित फैसला लेता है।
  • लोकसभा के इन नियमों को धीरे-धीरे कमोबेश रूप से सभी राज्यों की विधानसभाओं ने भी अपना लिया।
  • इसलिए हाल ही में उपर्युक्त नियम के आधार पर ही राजस्थान विधानसभा के स्पीकर ने राजस्थान के पूर्व-उपमुख्यमंत्री और उनके समर्थक विधायकों को नोटिस जारी किया है, अभी उन्होंने अयोग्यता संबंधित सुनवाई शुरू नहीं की है।
  • परन्तु पूर्व उपमुख्यमंत्री और उनके समर्थकों ने कांग्रेस पार्टी द्वारा जारी व्हीप को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दे दी है और हाई कोर्ट ने व्हीप संबंधित दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधानों को सुनना प्रारंभ कर दिया है ताकि अयोग्यता से संबंधित प्रावधानों को जाँच-परखा जा सके।

हाई कोर्ट के निर्णय की आलोचना

  • कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के मामलों को सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठें पहले ही सुन चुकी हैं और अपने ऐतिहासिक निर्णय सुना चुकी हैं। इस स्थिति में हाई कोर्ट को दल -बदल विरोधी कानून में वर्जित अयोग्यता संबंधित प्रावधानों को फिर से सुनने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। हाई कोर्ट को इस ओर ध्यान देना चाहिए था कि विधानसभा स्पीकर पार्टी की बैठक में न शामिल होने की अयोग्यता से संबंधित किन परिस्थितियों में सुनवाई कर सकता है या नहीं? इसके अतिरिक्त हाई कोर्ट विधान सभा सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों की सुनवाई किन परिस्थितियों में कर सकता है?
  • सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में अपने सुप्रसिद्ध मामले किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू (जKihato Hallohan vs Zachillhu) वाद में कहा था कि न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट या संसद या विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता के मामले में सुनवाई कर सकती है किन्तु यह तभी करना चाहिए जब सुनवाई की अविलंब आवश्यकता हो अर्थात स्पीकर द्वारा सदस्य की अयोग्यता पर निर्णय आने वाला ही हो या आ चुका हो।
  • इसलिए आलोचकों का कहना है कि वर्तमान में राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री तथा उनके समर्थक विधायकों के संबंध में दायर याचिका में राजस्थान हाई कोर्ट ने काफी ज्यादा तत्परता दिखाई ,जो उचित नहीं है,क्योंकि अभी राजस्थान विधानसभा के स्पीकर ने सिर्फ नोटिस ही जारी की थी न की किसी प्रकार की सुनवाई शुरू की थी।

दल-बदल विरोधी कानून एवं ह्नीप

  • दल-बदल विरोधी प्रावधानों को दसवीं अनुसूची में 52 वें संविधान संशोधन 1985 के द्वारा जोड़ा गया था। इसे 91 वें संविधान संसोधन 2003 के द्वारा पुनः संशोधित किया गया है।
  • यह किसी दल के सदस्यों को दल-बदलने से रोकता है।
  • गौरतलब है कि कोई राजनितिक पार्टी संसद अथवा विधानसभा में अपने सदस्यों की उपस्थिति, किसी विधेयक या अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा या वोटिंग हेतु अनिवार्य करने के लिए व्हीप जारी करती है और जो भी सदस्य इस ह्नीप का उल्लंघन करता है तो उसके विरुद्ध दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान लागू होते है, अर्थात इस कानून द्वारा उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।

आगे की राह

  • राजस्थान या अन्य राज्यों में ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए मणिपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सुझाव को अमल में लाया जा सकता है जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों की अयोग्यता निर्धारित करने के लिए एक स्वतंत्र प्रणाली बनाने का सुझाव दिया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि ‘जनप्रतिनिधियों की अयोग्यता की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसले से जुड़ी स्पीकर की शक्तियों के बारे में दोबारा विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि स्पीकर का संबंध किसी ना किसी राजनीतिक दल से होता है। इसके साथ ही सभी हितधारकों को भारत के लोकतंत्र में विश्वास करना चाहिए तथा राजनीतिक संकट के समय संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप निर्णय लेने चाहिए ताकि महत्वपूर्ण संस्थाओं की साख अक्षुण्ण रहे और लोकतंत्र में सभी का विश्वास दृढ़ रहे।