ब्लॉग : मध्य पूर्व में नए क्वाड से जुड़े भारत इजरायल , क्या होंगे इसके मायने by विवेक ओझा

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर इजरायल के दौरे पर रहे और ये दौरा काफी महत्वपूर्ण साबित होता दिखा है । ऐसा इसलिए है क्योंकि इजरायल भारत के साथ एक स्ट्रेटेजिक पार्टनर की भूमिका निभाता दिखा है। एक ऐसा सामरिक साझेदार जिसने भारत के इंटरनेशनल सोलर अलायंस से जुड़ने का निर्णय भी कर लिया है ताकि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बेहतर साझेदारी को बढ़ावा दिया जा सके। एक ऐसा आर्थिक साझेदार जिसने भारत के साथ लंबित पड़े हुए मुक्त व्यापार समझौते से जुड़ी वार्ता को पुनः शुरू करने के भारत के प्रस्ताव पर पूरी गर्मजोशी के साथ हामी भर दी है। 2010 में भारत और इजरायल ने एक मुक्त व्यापार समझौते को सम्पन्न करने के लिए वार्ता की थी लेकिन यह उस समय मूर्त रूप नहीं ले सका था। एक ऐसा हेल्थ पार्टनर जिसने इस बात के लिए भी सहमति दे दी है कि कोवीशील्ड वैक्सीन लगवा चुके भारतीय यात्रियों को इजरायल आने दिया जाएगा और इसी के साथ कोविड 19 वैक्सीन सर्टिफिकेट पर दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक मान्यता समझौता भी हुआ है। ये सभी समझौते और साझेदारियां भारतीय विदेश मंत्री की हालिया इजरायल यात्रा की देन हैं लेकिन इस यात्रा के दौरान जो सबसे बड़ी साझेदारी देखने को मिली है उसका कुछ अलग ही सामरिक आर्थिक महत्व है ।

दरअसल , भारत इजरायल , संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका ने क्वाडीलैटरल इकोनॉमिक फोरम को लांच करने का निर्णय लिया है। भारतीय विदेश मंत्री ने जेरुसलम से एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इन देशों के साथ संवाद स्थापित करते हुए इस आर्थिक फोरम को बनाने पर सहमति बनाई । ये एक तरीके का इकोनॉमिक क्वाड ग्रुप जैसा है। दरअसल पिछले साल अब्राहम एकॉर्ड के जरिये अमेरिका ने इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच कूटनीतिक संबंधों की स्थापना कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी , वहीं हाल के वर्षों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विस्तारित पड़ोस की नीति के तहत संयुक्त अरब अमीरात को भारत अपना पड़ोसी घोषित कर चुका हैं। संयुक्त अरब अमीरात को अपना पड़ोसी देश ख़ुद भारतीय विदेश मंत्री ने कुछ समय पहले अपनी यूएई यात्रा के दौरान कहा था और अब जब मध्यपूर्व क्षेत्र के लिये एक नए क्वाड समूह को बनाने की बात सामने आ गई है तो इससे इन चारों देशों में एक विशेष कनेक्शन भी विकसित हुआ है। अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने साफ तौर पर कहा है कि चारों देशों के नेताओं ने मिडिल ईस्ट और एशिया में राजनीतिक और आर्थिक सहयोग को बढ़ाने की बात पर सहमति जताई है। इन चारों देशों ने व्यापार , जलवायु परिवर्तन से निपटने , ऊर्जा सहयोग और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी साझेदारियों को मजबूती देने की बात की है। चारों देशों ने साफ किया है कि यह एक असैन्य गठजोड़ है जो असैन्य मुद्दों पर ही अपनी साझेदारियों को मजबूत करेगा।

क्यों पड़ी मध्यपूर्व में क्वाड गठन की जरूरत :

पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में बदलाव आया है ख़ासकर तालिबान की अफ़ग़ानिस्तान में ताजपोशी हुई है , उसके बाद से अरब विश्व या यूं कहें इस्लामिक विश्व , खाड़ी देश , ओआईसी के देश , टर्की , मलेशिया, पाकिस्तान जैसे देश वैश्विक इस्लामिक हितों पर मिलजुल काम करने के लिए सहमति बनाने में लगे रहे हैं। वहीं टर्की के सऊदी अरब , संयुक्त अरब अमीरात , मिस्र और ग्रीस जैसे देशों के साथ विवाद भी तेज हुए हैं। टर्की के राष्ट्रपति एरडोगन की क्षेत्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं हैं। यह गौर करने वाली बात है कि जब 2017 में सऊदी अरब ने कुछ अन्य खाड़ी देशों के साथ मिलकर कतर के साथ कूटनीतिक संबंध खत्म कर लिए थे , उस समय टर्की ने कतर का समर्थन किया था। इसके अलावा टर्की की जनरल असेंबली में राष्ट्रपति एरडोगन यह भी कह चुके हैं कि कुछ खाड़ी देश टर्की को निशाना बना रहे हैं और उन नीतियों का पालन कर रहे हैं, जिससे अस्थिरता आ सकती है।

तुर्की और सऊदी अरब के बीच राजनीतिक मतभेद बहुत बढ़ते चले जा रहे हैं। इसमें क्षेत्रीय स्तर पर यमन, लीबिया, इराक़ और सूडान को लेकर राजनीतिक मतभेद के साथ-साथ इस्लाम को लेकर नेतृत्व की रस्साकशी भी चल रही है।

दूसरा , पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्र राजनीतिक विवादों के दायरे में आता दिखा है जिसके चलते भी मध्य पूर्व क्षेत्र में क्वाड के गठन का औचित्य दिखता है। इस क्षेत्र में ग्रीस , टर्की ,इजरायल , फिलिस्तीन , मिस्र , साइप्रस , जॉर्डन , लेबनान जैसे देशों के बीच जिस तरह से भूराजनीतिक , भूसामरिक प्रतिस्पर्धा चल रही है उसे देखते हुए भारत सहित अमेरिका , इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्र में अपने हितों के लिए सतर्क हुए हैं । इसी कड़ीं में कुछ माह पूर्व भारतीय विदेश मंत्री ने ग्रीस की यात्रा की थी , उससे सामरिक साझेदारी पर सहमति बनाई थी , ग्रीस को इंटरनेशनल सोलर अलायंस से जुड़ने के लिए राजी किया था । भारतीय राजनय की यही कुशलता है कि इस चर्चा के दौरान भारत ने ग्रीस को इंडो पैसिफिक स्ट्रेटेजी और विजन के महत्व को इस प्रकार समझाया कि ग्रीस ने भारत के साथ इंडो पैसिफिक विजन पर हस्ताक्षर कर दिया। भारत ने ग्रीस को जिस रूप में मुक्त, खुले, समावेशी और सहयोगी इंडो पैसिफिक रणनीति के बारे में अपनी राय व्यक्त की, उसका असर ग्रीस पर पड़ा। अभी कुछ समय पूर्व ही ग्रीस और उसके पड़ोसी तुर्की के बीच सागरीय क्षेत्र के स्वामित्व को लेकर विवाद हो गया था। तुर्की ने ग्रीस के अनन्य आर्थिक क्षेत्र पर अपना दावा कर दिया था और ग्रीस ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सागरीय नियमों व कानूनों के तहत उस पर ग्रीस का ही अधिकार है। निश्चित रूप से भारत जिस प्रकार सभी देशों की सागरीय संप्रभुता और स्वायत्तता का समर्थन करता रहा है, ग्रीस भारत की उस उच्च कोटि की प्रतिबद्धता से परिचित रहा है। पूर्वी भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस और अन्य ऊर्जा संसाधनों के विशाल भंडार हैं जिस पर टर्की की भी निगाह है और वह इस मामले में ग्रीस और साइप्रस को प्रतिस्पर्धा देता है। टर्की को इस बात का गुस्सा भी है कि वह भूमध्यसागरीय गैस फोरम (ईएमजीएफ) से इसे बाहर क्यों है। इस फोरम का गठन जनवरी 2019 में कायरो में हुआ था और इसे ‘भूमध्यसागरीय गैस के ओपेक’ की संज्ञा दी गई थी। इस फोरम में ईजिप्ट, ग्रीस, साइप्रस, इजरायल, इटली, जॉर्डन और फिलिस्तीन शामिल हैं। भारत ने जिस तरह से क्षेत्रीय स्थिरता के लिए साइप्रस और लीबिया का उल्लेख करते हुए ग्रीस से चर्चा की और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों की शुचिता बनाए रखने की बात की, उससे साफ है कि तुर्की को भी भारत एक संदेश देना चाहता था। तुर्की की सरकार को डर है कि पूर्वी भूमध्यसागर का इस्तेमाल तुर्की को अलग-थलग करने की कोशिशों में किया जा रहा है। ग्रीस और साइप्रस ने यूरोपीय संघ से तुर्की की कार्रवाई के खिलाफ समर्थन की मांग की है और इनके साथ ही तुर्की के क्षेत्रीय विरोधी भी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं। 

तीसरा , मध्य पूर्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था को दिशा देने में जिस तरह से खाड़ी देशों सऊदी अरब , यूएई, और कतर की भूमिका बढ़ी है , उसके चलते भी मिडिल ईस्ट क्वाड के निर्माण की धारणा को बल मिला है। इसके अलावा फ्रांस , रूस , चीन जैसी बड़ी ताकतों का रुझान भी पूर्वी भूमध्यसागर में बढ़ा है। चीन का ग्रीस के साथ जिस तरह का एनर्जी पार्टनरशिप रहा है और जिस तरह से ग्रीस जैसे देशों को चीन ने अपने बेल्ट रोड पहल से जोड़ रखा है , उसके नकारात्मक परिणाम न आने देने के लिए मध्य पूर्व क्षेत्र में क्वाडीलैटरल इकनोमिक फोरम बनाने का निर्णय पूरी तरह से सही है।

भारत इजरायल के द्विपक्षीय संबंध :

वित्त वर्ष 2020- 2021 में भारत और इजरायल के बीच वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार 4.14 बिलियन डॉलर है और व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है जिसका मतलब है कि भारत वस्तुओं और सेवाओं का इजरायल को निर्यात अधिक करता है और आयात कम । लेकिन वस्तु सेवा के इस द्विपक्षीय व्यापार में प्रतिरक्षा व्यापार शामिल नही है। उसकी गणना अलग से की जाती है। अभी अमेरिका , इजरायल , संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों की 13 अक्टूबर को वाशिंगटन में बैठक हुई और उसी के कुछ ही दिनों बाद इन तीनों देशों और भारत के बीच बैठक हुई । ये इस बात का संकेत है कि क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक व्यापार को मजबूती देने के लिए इन चारों देशों में सहमति बन रही है।

भारत और इजराइल के मध्य द्विपक्षीय व्यापार में लगभग 50 प्रतिशत का योगदान हीरे के व्यापार का है। एशिया में इजराइल भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है जबकि वैश्विक स्तर पर इजरायल भारत का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।  हाल के वर्षों में दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में कई क्षेत्रों में विविधता आई है और फार्मास्युटिकल, कृषि,  सूचना प्रौद्योगिकी उत्पाद,  दूरसंचार और होमलैंड सुरक्षा के क्षेत्र में द्विपक्षीय आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं । भारत की तरफ से इजराइल में किए जाने वाले निर्यात में मुख्य रूप से शामिल हैं : बहुमूल्य पत्थर और धातु ,  रासायनिक उत्पाद, टेक्सटाइल आदि जबकि भारत इजरायल से जिन प्रमुख वस्तुओं का आयात करता है उसमें शामिल हैं बेशकीमती पत्थर और धातुएं रासायनिक और खनिज उत्पाद,  बेस मेटल्स और मशीनरी तथा परिवहन उपकरण,  पोटाश  आदि ।  हाल के वर्षों में भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियां खासकर टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज,  इंफोसिस,  टेक महिंद्रा और विप्रो ने इजरायल के बाजारों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है।  जुलाई 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इजरायल की यात्रा के दौरान नवनिर्मित इंडिया इजरायल मुख्य कार्यकारी अधिकारी फोरम की पहली बैठक का आयोजन किया गया था जबकि इसकी दूसरी बैठक का आयोजन वर्ष 2018 में इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के भारत भ्रमण के दौरान किया गया था।

इजरायल में भारतीय प्रवासी हैं अम्बीलिकल कॉर्ड :

भारतीय विदेश मंत्री ने इजरायल में रह रहे प्रवासी भारतीयों को भारत इजरायल संबंधों के अम्बीलिकल कॉर्ड ( गर्भनाल ) का दर्जा दिया जो इंडियन डायस्पोरा के महत्व को दर्शाता है। अम्बीलिकल कॉर्ड वो महत्वपूर्ण अंग है जो गर्भाशय में विकसित होता है और इसी के जरिए गर्भ में पल रहे बच्चे को पोषण पहुंचता है। यानी भारत और इजरायल के संबंधों को पोषण प्रदान करने वाले भारतीय प्रवासी ही हैं।

भारतीय डायस्पोरा की बात करें तो इजराइल में भारतीय मूल के लगभग 85,000 यहूदी रहते हैं जिसमें इन यहूदियों के अभिभावकों में से कम से कम एक भारतीय हैं और इन सबके पास इजरायली पासपोर्ट हैं। 1950 और 1960 में भारत के नागरिकों का इजराइल में जाना शुरू हुआ इसमें महाराष्ट्र से जाने वाले लोग जो इजराइल में बस गए उन्हें बेनी इजराइलिस कहा जाता है जबकि केरल से जाने वाले यहूदी लोगों को कोचीनी यहूदी कहा जाता है , वहीं कोलकाता से जाने वाले यहूदियों को इजराइल में बगदादी यहूदी कहा जाता है। हाल के वर्षों में भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों से जिन यहूदियों ने इजराइल में प्रव्रजन किया है उन्हें बेनी मेनाशी कहते हैं। भारतीय विदेश मंत्री ने अपनी इजरायल यात्रा के दौरान कहा कि इन प्रवासियों द्वारा इजरायल में भारतीय संस्कृति , सभ्यता , शिक्षा , भाषा , पूजा पाठ की पद्धतियों , खानपान , वेषभूषा को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण योगदान किया जा रहा है। गौरतलब है कि भारतीय मूल के कोचीन के एलियाहू बेजालेल जो इजरायल में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक हैं , को वर्ष 2005 में भारतीय प्रवासी सम्मान प्राप्त प्राप्त हुआ था और ऐसा सम्मान पाने वाले वे भारतीय मूल के पहले यहूदी थे।

भारत इजरायल प्रतिरक्षा संबंध :

भारत और इजरायल के मध्य प्रतिवर्ष लगभग 1 बिलियन डॉलर का प्रतिरक्षा व्यापार होता है भारत महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों , हथियारों का आयात इजरायल से करता रहा है। भारत के लिए दक्षिण एशिया में आतंकवाद से निपटने , हिन्द महासागर की सुरक्षा , पाकिस्तान और चीन से सामरिक दृष्टि से निपटने में इजरायल भारत के लिए उपयोगी है। इजरायल ने भारत को फाल्कन अवाक्स रडार , बराक मिसाइल, ग्रीन पाइन रडार, स्पाइस बॉम्ब प्रदान किए हैं । वर्ष 2019 में भारत ने इजरायल से 300 मिलियन डॉलर मूल्य वाले 100 स्पाइस बॉम्ब खरीदने का समझौता किया है। भारत ने पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ किए गए बालाकोट स्ट्राइक में स्पाइस बॉम्ब का ही उपयोग किया था । इसके अलावा इजरायल भारत को मानव रहित विमान हेरान और हारूप दे चुका है।  2017 में इज़रायल में हुए पहले संयुक्त सैन्या भ्यास ब्लू फ्लैग - 17 में भारतीय वायु सेना के गरुण कमांडोज ने भाग लिया था ।

भारत और इजरायल के प्रतिरक्षा  संबंधों को मजबूती दोनों के मध्य हुए होमलैंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट से भी मिली है। उल्लेखनीय है कि इस समझौते के तहत सीमा पार आतंकवाद से निपटने , आंतरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने, अपराध नियंत्रण और निरोध तथा पुलिस आधुनिकीकरण के विषयों पर बल दिया जाता है। भारत द्वारा पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ किए गए सर्जिकल स्ट्राइक में स्पाइस बॉम्ब का इस्तेमाल किया जाना होमलैंड सिक्योरिटी के लिए दोनों की वचनबद्धता को दर्शाता है ।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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